Thursday 4 September 2014

एक माँ की कलम से (Happy Mother's Day)

एक माँ की कलम से (Happy Mother's Day)



प्राणी जगत में  पशु, पक्षी एवं मनुष्य सभी वर्ग को माँ के आँचल में ही सारी परेशानी और बैचेनी को सकून मिलता है। हम सब अक्सर देखते हैं एक चिङिया किस तरह एक-एक दाना के लिए उङान भरती है और बच्चे को अपनी चोंच से एक-एक दाना खिलाती है। इस वातसल्य के भाव को शब्दों में समेटा नही जा सकता।  माँ की प्यार भरी डाँट और दुलार को पाने के लिए स्वयं ईश्वर भी बच्चे के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होते हैंं।

एक बच्चे के जनम पर  ईश्वर उसे माँ रूपी तोहफा देते हैं, तो दूसरी तरफ एक स्त्री के असतित्व को माँ रूपी सम्मान से सम्मानित करते हैं। ईश्वर नारी को कुदरत के कार्य  में सहभागी बनाते हैं, नौ महिने तक सहनशीलता के साथ उसे जीवन चक्र को गतिमय रखने की शक्ति प्रदान करते हैं।  ये ऐसा रूप है जिसमें सारी ईश्वरिय शक्ति समाहित है। न जाने किस मिट्टी से उसे ईश्वर ने बनाया है, जो न कभी थकती है और न कभी रुकती है। हर पल अपने बच्चों की सुरक्षा में वटवृक्ष की तरह अपने आँचल की छाँव देती है।  अपने बच्चे के प्रति सुरक्षा का भाव एवं उसे श्रेष्ठ बनाने की जद्दोज़हद में कभी-कभी वो कठोर भी बन जाती है। स्वंय चाहे कितनी भी नाराज हो अपने बच्चे से परन्तु किसी दूसरे की नाराजगी के आगे सदैव ढाल बनकर खङी हो जाती है। माँ के सम्पूर्ण वातसल्य भाव में सब्र (Patience)   का भाव अतिआवश्यक होता है परन्तु आजकल कुछ ही माताओं में ये दिखाई देता है। हकिकत तो ये है कि मुझमें भी इस गुणं का अभाव रहा जिसकी वजह से मेरे बच्चों की मेरे द्वारा यदा-कदा  पिटाई भी हुई जो शायद किसी भी तर्क से सही नही थी। ये मेरा सौभाग्य है कि मेरे दोनो ही बच्चे मेरे इस व्यवहार को सकारात्मक रूप से अपनाए। आज मेरी बेटी और मेरा बेटा दोनो ही अपनी योग्यता के आधार पर कई बच्चों के लिए प्रेरणास्रोत बन रहे हैं। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि  मेरे दोनो ही बच्चे हमारी फिक्र करते हैं हम तुलना भी नही कर सकते कि कौन कितना फिक्रमंद है।  जबकि  हमारे समाज में अक्सर कहा जाता है कि बेटी ही भावुक होती है और माता-पिता का अधिक ख्याल रखती है। सच तो ये है कि, माँ और बच्चे के रिश्ते में बेटी-बेटे का भेद सिर्फ सामजिक कुप्रथा है  क्योंकि ममता से पूर्ण वातसल्य कोई रिश्ता नही है बल्कि ईश्वरीय शक्ति का एहसास है जो हरपल हम सबके पास होता है।

किसी ने सच कहा हैः- When you are a Mother, You are never really alone in your thoughts..
                                  A Mother always has to think twice, Once for her self & Once for her Child. 

आज भी बच्चों का हमारे प्रति फिक्र और ध्यान (attention )  रखने का भाव मुझे सुखद एहसास देता है। जब भी अतीत के पन्नो को देखते हैं तो उनकी बालसुलभ हरकतें और बचपन की किलकारियाँ मेरे लिए किसी साज की संगीतमय धुन के समान होती है जिसकी तरंग से मन भाव-विभोर हो जाता है।  हम अपनी कलम से  ईश्वर का कोटी-कोटी धन्यवाद करते हैं, जिसने नारी को माँ रूपी कुदरती उपहार से अलंकृत किया और मुझे गौरवान्वित करने वाले बच्चों का साथ दिया।  

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