Thursday 4 September 2014

बेटी है तो कल है

बेटी है तो कल है   



हमारे देश में दिन-प्रतिदिन कन्याभ्रूण हत्या में इजाफा हो रहा है। सेंटरफॉर रिसर्च के अनुसार लगभग बीते 20 वर्षों में भारत में कन्याभ्रूण हत्या के कारण एक करोङ बच्चियां जन्म से पहले काल की बली चढा दी गईं हैं। लङकियों के प्रति अवहेलना की मानसिकता सिर्फ अनपढ लोगों में नही है बल्की पढे-लिखे वर्ग में भी व्याप्त है। कुछ समय पूर्व स्टार प्लस पर सत्यमेव जयते नामक कार्यक्रम प्रदर्शित हुआ था जिसमें कन्याभ्रूण पर भी एक परिचर्चा थी। उसमें कई ऐसी महिलाओं की आपबीती थी जिससे पता चला कि बेटी पैदा होने पर एक माँ के साथ हैवानियत जैसा व्यवहार किया गया। पेशे से डॉ. महिला को भी कन्याभ्रूण हत्या जैसी क्रूर मानसिकता का शिकार होना पङा। बालिकाओं के प्रति संवेदनाहीन एवं तिरस्कार जैसी भावना किसी भी देश के लिए चिंताजनक है।


वर्ष 1991 मे हुई जनगणना से लिंग-अनुपात की बिगड़ती प्रवृत्ति को देखते हुए, कई राज्यों ने बेटीयों के हित के लिये योजनाएं शुरू की। जैसे कि- – मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना एवं लाडली लक्ष्मी योजना भारत सरकार द्वारा धन लक्ष्मी योजना, आंध्र प्रदेश द्वारा बालिका संरक्षण योजना, हिमाचल प्रदेश  ने बेटी है अनमोलयोजना शुरू की तो पंजाब में बेटियों के लिए रक्षक योजना की शुरूवात की गई। ऐसी और भी योजनाएं अन्य राज्यों में चलाई जा रही है। बेशक आज बेटियों के हित में अनेक योजनाएं चलाईं जा रही हैं,  किंतु भारतीय परिवेश में बेटियों के प्रति विपरीत सामाजिक मनोवृत्तियों ने बच्चियों के लिए असुरक्षित और असुविधाजनक माहौल का ही निर्माण किया है। योजनाएं तो बन जाती हैं परन्तु उनका क्रियान्वन जागरुकता के अभाव में सिर्फ कागजी पन्नो में ही सिमट कर रह जाता है। बेटीयों का अस्तित्वशिक्षास्वास्थ्यविकाससुरक्षा और कल्याण, समाज में व्याप्त रुढीवादिता और संकीर्ण सोच की बली चढ जाता है।



बेटी बचाओ जैसी योजनाएं और अनेक कार्यक्रम इस बात की पुष्टी करते हैं कि आज अत्याधुनिक 21वीं सदी में भी हम लिंगानुपात के बिगङते आँकङे को सुधार नही पा रहे हैं। पोलियो, कैंसर, एड्स जैसी बिमारियों को तो मात दे रहे हैं किन्तु बेटीयों के हित में बाधा बनी संकीर्ण सोच को मात नही दे पा रहे हैं। आज भी सम्पन्न एवं सुशिक्षित परिवारों में लङकी होने पर जितनी भी खुशी मनाई जाती हो, लेकिन लङके की ख्वाइश उनके मन से खत्म नही होती। जबकी आज माँ-बाप को कंधे देने का काम बेटी भी कर सकती है, अन्त समय में माँ-पिता के मुँह में वो भी गंगाजल डाल सकती है। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि ऐसा कोई काम नही है जो बेटी नही कर सकती।


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