Thursday 4 September 2014

हमारी बेटियाँ

हमारी बेटियाँ

बेटी तो बेटी होती है, चाहे वो कानून के रखवालों की हो या आम जनता की या स्वयं कानून की रक्षाकर्मी, किसी को भी दहेज रूपी वायरस अपना निशाना बना सकता है। ये विषाणु अमीर गरीब, साक्षर-निरिक्षर, क्या नेता, क्या अभिनेता किसी को भी नही देखता, इसके लिये तो सिर्फ बेटी नाम ही काफी है।  

बेटे की चाह और दहेज-प्रथा गम्भीर सामाजिक बुराइयाँ हैं। हमारे समाज में बेटियों को पराया धन माना जाता है। एक कहावत है कि- बेटियों को पालना ऐसा है जैसे पङोसी के बगीचे में पानी देना”; ऐसी विक्षिप्त मानसिकता बेटी के विकास में सबसे बङी बाधा है। 

एक तरफ तो हम नारी रूप की पूजा करते हैं, मंदिरों में जाकर लक्ष्मी, सरस्वती, और दुर्गा माँ को पूजते हैं। हम माँ को इतना आदर देते हैं कि जिस जमीन पर रहते हैं उसे धरती माता कहते हैं। जिस देश में रहते हैं उसे मातृ-भूमी कहते हैं। लेकिन दूसरी तरफ एक बच्ची की जान लेते हैं क्योंकि वह लङकी है।
हमारी बेटियों पर आतंक का साया तो गर्भ में आने से ही शुरू हो जाता है। कहीं भ्रूंण हत्या के रूप में, तो कहीं पैदा होने के बाद उन्हे वो सुविधा न देकर जो लङकों को दी जाती है। अनेक मुसीबतों को पार करके अगर बच गईं तो दहेज रूपी सुरसा अपना मुँह खोले खङी होती है।

हमारी संस्कृति को कायम रखने में औरत का बहुत बङा योगदान है। जरा सोचिये, दादी माँ की कहानियों के बिना, माँ के दुलार के बिना, बहन की छेङछाङ और बेटी की प्यार भरी देखभाल के बिना जीवन कैसा होगा। पत्नी सुख दु:ख में जीवन भर का साथ देती है। इन सभी के अभाव में जीवन नीरस हो जायेगा।

भगवान ने नारी को जननी होने का अनमोल उपहार देकर उसे सृष्टी को आगे बढाने की खास जिम्मेदारी सौंपी है। किन्तु हम इतने निडर हैं कि ईश्वर की इस कृति को अंकुर रूप में ही नष्ट करने पर तुले हैं। ऐसे रूप को जो संवेदनाओं से परिपूर्ण है, अपनेपन से रिश्तों का एक सुंदर और मजबूत ताना-बाना बुनती है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों एवं बिमारों की देखभाल निश्छल भाव से पूरी आत्मीयता से करती है। फिर भी बेटे की चाहत रखने वाले उसे वो सम्मान नही देते जिसकी वो हकदार है। बेटे की चाहत सिर्फ पुरूष वर्ग में ही नही है, ज्यदातर औरतें भी बेटे की चाहत रखती हैं।

इतिहास गवाह है कि भारतीय समाज में पुरुषों की प्रधानता रही है, हमेशा ही बेटे का मोह रहा है। आज की आधुनिक शिक्षा हो या तरक्की करता भारत हो,एक इच्छा अभी तक नही बदली वो है बेटे की चाह।

एक सोच, एक विचार हममें से कई लोगों मे घर किये हुए है कि पुत्र वंश को चलाता है। मित्रों, मेरा ये मानना है कि वंश तो अच्छे विचारों एवं अच्छे कर्मो से याद किया जाता है। ये कहना अतिश्योक्ती न होगी कि रानी लक्ष्मी की वजह से उनके पिता को याद किया जाता है। इंदिरा गाँधी, किरण बेदी जैसी बेटियों ने अपने वंश का और देश क नाम रौशन किया है। रजिया सुल्तान, दुर्गावती, प्रतिभा पाटिल जैसी अनेक महिलाओं ने इतिहास रचा है। इन्द्रा नूई, नैना किदवई, चन्दा कोचर, आदि बेटियाँ उद्योग जगत की शान हैं।

दहेज भारतीय समाज की एक ऐसी परंपरा है जिसने कोई फायदा पहुँचाने के बजाय समाज में सिर्फ जहर ही फैलाया है।

एक बार महात्मा गाँधी ने कहा था कि- जो नौजवान दहेज की शर्त पर ही शादी करते हैं, वह अपनी शिक्षा, अपने देश और नारी जाति सबका निरादर करते हैं।

अगर हमारे सामाजिक रीती रिवाज माँ बाप को ही अपनी नन्ही बेटी के जन्म पर खुश नहीं होने देते तो हम क्या ये आशा रख सकते हैं कि वही समाज उस लङकी को आगे चलकर खुशी और सम्मान से जीने देगा।

ज्यादातर मामलों में माँ-बाप को बेटी पर होने वाले अत्याचार की जानकारी होती है किन्तु सामाजिक व्यवस्था का जो आतंक है उसके खिलाफ नही जाते, परिणाम कुछ बेटीयाँ आत्हत्या कर लेती हैं य़ा कुछ ससुराल वालों के स्टोव या गैस की अग्नि के चपेट में आ जाती हैं।

सरोजिनी नायडू ने कहा था कि- जब भी समाज में अत्याचार होता है – आत्मसम्मान इसी में है कि उठो और कहो कि यह अत्याचार आज ही खत्म करना होगा क्योंकि न्याय पाना मेरा हक है।

कुदरत में हमेशा संतुलन रहा है। एक के बिना दूसरा अधूरा है, जैसे- अँधेरा और उजाला, दिन-रात, सर्द-गर्म, बेटा-बेटी; इन सबकी अपनी एहमियत होती है किन्तु हम हैं कि कुदरत के संतुलन को बिगाङने पर तुले हुए हैं।

कबीर दास जी कहते हैं कि- एक नूर ते सभु जगु उपजिआ, कउन भले को बन्दे।

जिस आत्मा की शक्ती से हम सब जिन्दा हैं उसका कोई लिंग नही होता। ईश्वर की नजर में नर-नारी (बेटा-बेटी) में कोई फर्क नही है। सब पवित्र आत्माएं हैं, सब मालिक का एक रूप हैं, सब बराबर हैं।

महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि- जब तक हम बेटी के जन्म का भी वैसे ही स्वागत नही करते जितना बेटे का, तब तक हमें समझना चाहिये कि भारत विकलांग रहेगा।

नवरात्री में नौ दिनों तक कन्याओं के चरण पखारते हैं। वर्ष मे एक दिन दिवस मनाकर खुश हो जाते हैं। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समानता के लिये भारत सरकार ने कई कानून भी बनाये हैं। संविधान में वोट देने का अधिकार, पढने-लिखने का अधिकार, काम करने का अधिकार। ऐसे ही कई अधिकार दिये गये हैं किन्तु सच्चाई तो ये है कि जब बेटी से उसके जीने का हक ही छीन लिया जाता है तो, ये सभी अधिकार एवं सम्मान बेमतलब हो जाते हैं।

इन सब का सार्थक असर तभी संभव है जब हम सब अपनी सोच में परिवर्तन लाएंगे। सही रास्ते पर चलने के लिये हमें कुछ कुरीतियों को पीछे छोङना होगा। बेशक ये आसान काम नही है। हमारे पुराने रीति रिवाज और सोच हमारी जङों में बसी हुई है, यहाँ तक कि जब हम देश छोङ विदेश जाते हैं, इन्हे भी साथ ले जाते हैं। आज जो भारतवासी अमरिका, कनाडा और इंग्लैंड जैसे देशों में बसे हैं, वो भी भ्रूण हत्या कर रहे हैं। विदेशों में बसे भारतीय नौजवान दुल्हन चुनने स्वदेश आते हैं तथा भारी दहेज की माँग भी रखते हैं क्योंकि वे ज्यादा पढे लिखे एवं विदेश में बसे हुए हैं।

हमारे समाज में बुनियादी बदलाव तब पूरी तरह कारगर होगा जब औरतें भी अपनी सोच को बदलेंगी। जब एक औरत में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास होता है, तभी वह अपनी बेटी को भी सम्मान से जीना सिखा सकती है।

हम अपनी बेटी को बङे से बङा तोहफा यही दे सकते हैं कि उसे सशक्त करके आत्म सम्मान दें। उसे भी बेटे जैसा प्यार, पढाई में बराबर का मौका दें। सदैव आगे बढने की प्रेरणा दें। आत्मसम्मान से भरपूर बेटी, एक दिन आपके लिये गर्व का कारण होगी। उसमें ऐसे साहस को जागृत करें कि वह दहेज और भ्रूणहत्या जैसे वायरस को नष्ट कर सके।

कहते हैं – हजार मील का लम्बा सफर, पहले कदम से ही शुरू होता है।

इसी विश्वास के साथ कि हमारी बेटियों को भी वही सम्मान और प्यार मिलेगा जो बेटों को मिलता है। निम्न पंक्तियों के साथ कलम को विराम देना चाहेंगे किन्तु प्रयास निरंतर गतिमान रहेगा।

नन्ही बेटी को जीवन का वर दो,

जगत जननी है वो, प्रेम की शक्ती है वो,

शितल छाया है परिवार की आत्मा है वो,

नन्ही बेटी को जीवन वर दो,

शिक्षा का सौभाग्य उसे दो,

बराबर के अधिकार उसे दो,

जीवन में सम्मान उसे दो,

आखिर बेटी है किससे कम ?

                       गाँव की सरपंच रही,

कामयाब राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री रही,

ऐस्ट्रोनाँट, डॉक्टर, प्रोफेसर बनी,

उद्योगपति, पायलट, इंजीनियर बनी,

विज्ञान में, भक्ती में, सहित्य और कला में,

गौरवान्वित किया उसने हर क्षेत्र में हम सबको,

उसकी प्रतिभा को सम्मान दो,

नन्ही बेटी को जीवन का वर दो।

    

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