Thursday 4 September 2014

शक्ति की उपासना का पर्व

शक्ति की उपासना का पर्व



शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथिनौ नक्षत्रनौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की।
शारदीय नवरात्र में शरद ऋतु में दिन छोटे होने लगते हैं और रात्रि बड़ी। परिवर्तन काल का असर मानव जीवन पर न पड़ेइसीलिए साधना के बहाने हमारे ऋषि-मुनियों ने इन नौ दिनों में उपवास का विधान बताया है जिससे मनुष्य खान-पान के संयम और श्रेष्ठ आध्यात्मिक चिंतन से स्वयं को भीतर से सबल बना सके इसीलिए इसे शक्ति की आराधना का पर्व भी कहा गया। यही कारण है कि भिन्न स्वरूपों में इसी अवधि में जगत जननी की आराधना-उपासना की जाती है।

नवरात्रि संस्कृत शब्द हैजिसका अर्थ होता है नौ रातें । नवरात्रि में दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं।
दुर्गाजी पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्रीपड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।

माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चन्द्रघंटा है। असुरों के साथ युद्ध में देवी ने घंटे की टंकार से असुरों को चित कर दिया। यह नाद की देवी हैं। माँ चंद्रघंटा के मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र हैइसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है।माँ चंद्रघंटा की कृपा से विविध प्रकार की ध्वनियां सुनाई देती हैं इसलिए इन्हें स्वर विज्ञान की देवी भी कहा जाता है। 
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्मांडा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है।देवी कूषमांडा सूर्यमंडल में निवास करती हैं। यह अकेली ऐसी देवी हैं जो सूर्यमंडल में निवास करने की क्षमता रखती हैं।
नवरात्रि का पाँचवेँ दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हे पद्मासना भी कहते हैं। 
माँ दुर्गा के छठे स्वरूप में कात्यायनी देवी को पूजा जाता है। माँ कात्यायनी अमोध फलदायनी हैं। भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिये ब्रज की गोपियों ने यमुना के तट पर इनकी पूजा की थी। माँ कात्यायनी का वाहन शेर है।

माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्री के नाम से जानी जाती हैं। ये सदैव शुभफल देने वाली हैं इसलिये इन्हे शुभकारी भी कहते हैं।
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। तुलसीदास के अनुसार, शंकर भगवान को पाने के लिये किये गये कठोर तप के कारण देवी का शरीर काला हो गया था। तद्पश्चात तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने गंगा जी का जल इनके शरीर पर डाला जिससे देवी का शरीर कान्तीमय और गौर हो गया तभी से इनका नाम महागौरी पङा।
माँ सिद्धीदात्री दुर्गा जी की नौवीं शक्ति का नाम है। जो सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव को प्राप्त आठ सिद्धियाँ देवी की कृपा से ही प्राप्त हुई है। सिद्धीदात्री की अनुकंपा से ही शिव का आधा शरीर देवी का हुआ है और भगवान शिव अर्धनारिश्वर के नाम से भी जाने जाते हैं।
शिव की नगरी काशी में भगवान शिव और काल भैरव के दर्शन लाभ के साथ ही यहाँ दुर्गा के नौ रूपों के दर्शन का भी पुण्य प्राप्त होता है।महादेव की स्तुतियों के साथ ही देवी की आराधना के स्वर गूंजते रहते है। नवरात्री में शिव नगरी शक्तिमय हो जाती है। काशी के विभिन्न स्थानों पर दुर्गा के नौ रूप विराजमान हैं उनमें से दुर्गाकुण्ड का दुर्गा मंदिर अत्यंत प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर है। देवी भागवत के अध्याय 23 में इसका उल्लेख मिलता है कि काशी नरेश सुबाहु ने स्तुति कर माँ से वरदान माँगा था कि काशी में सदा विराजें एवं इसकी रक्षा की कृपा करें। कथानुसार दुर्गाकुण्ड मंदिर ही वो सिद्ध मंदिर है जहाँ राजा के आग्रह से माँ दुर्गा विराजमान हैं।   
नवरात्रि पर्व के समय प्राकृतिक सौंदर्य भी बढ़ जाता है। प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ वातावरण सुखद होता है। बंगाल का दुर्गा पूजा हो या गुजरात का डांडिया सभी के मन को उत्साहित कर देता है। आश्विन मास में मौसम में न अधिक ठंड रहती है न अधिक गर्मी, शरद ऋतु की शुरुआत एवं  बारिश की बिदाई का सुखद वातावरण यह संदेश देता है कि जीवन के संघर्ष और बीते समय की असफलताओं को पीछें छोड़ मानसिक रूप से सशक्त एवं ऊर्जावान बनकर नई आशा और उम्मीदों के साथ आगे बढ़े। इसी मंगलकामना के साथ आप सभी को नवरात्री की ढेरों बधाई।

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