Thursday, 4 September 2014

वन्दे मातरम् vande mataram

वन्दे मातरम् vande mataram


भारत की आजादी से पूर्व अनेक देशभक्त अपने-अपने प्रयासों से जातिय बंधनो से मुक्त होकर भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने का हर संभव प्रयास कर रहे थे। उसी दौरान आजादी के संघर्ष में वन्दे मातरम् जन-जन की आवाज था।  गीता का ज्ञान, कुरान की आयते तो गुरु ग्रन्थ साहिब की वाणीं को एक उदद्घोष में भारत माता के वीर सपूत गुंजायमान कर रहे थे। वन्दे मातरम् अनेक लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत रहा। इस राष्ट्रीय उद्घोष का इतिहास एक सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है। सबसे पहले इस गीत का प्रकाशन 1882 में हुआ था और इस गीत को सर्वप्रथम 7 सितम्बर 1905 के कांग्रेस अधिवेशन में राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त हुआ था। 

वन्दे मातरम् गीत की रचना प्रख्यात उपन्यासकार बंम्किमचंद चटोपाध्या ने की थी। उन्होने 19वीं शताब्दी के अन्त में बंगाल के मुस्लिम शासकों के क्रूरता पूर्वक व्यवहार के विरोध में आन्नद मठ नामक एक उपन्यास लिखा। जिसमें पहली बार वंदे मातरम् गीत छपा जो पूरे एक पृष्ठ का था। इस गीत में मातृभूमि की प्रशंसा की गई थी। ये गीत संस्कृत और बंगला भाषा में प्रकाशित हुआ था। 

वन्दे मातरम् का उद्घोष सबसे अधिक 1905 में हुआ जब तत्कालीन गर्वनर जनरल लार्ड कर्जन ने "बाँटो और राज करो" की नीति का अनुसरण करते हुए बंगाल को दो टुकङों में विभाजित करने की घोषङा की और इस विभाजन को बंग-भंग का नाम दिया। लार्ड कर्जन की इस नीति का जबरदस्त विरोध हुआ। उस समय विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी आन्दोलन के साथ-साथ वन्दे मातरम् को व्यापक रूप से जन-साघारण ने अपनाया। इसके बाद अंग्रेजों के विरुद्ध जो भी आन्दोलन हुआ उसमें वंदे मातरम् जन-जन की वाणी बना। बंगाल से शुरु हुआ ये उद्घोष पूरे देश में फैल गया।


अखिल भारतिय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी वंदे मातरम् उद्घोष को अपनाया। समय के साथ-साथ और परिस्थितियों के अनुसार वंदेमातरम् गीत में अनेकों बार संशोधन किय गये। अंत में इसके विस्तार को हठाकर चार पंक्तियों तक सिमित कर दिया गया। कांग्रेस के अधिवेशनों का प्रारंभ इसी गान के गायन से प्रारंभ होता था और समाप्त होता था। अतः ये गीत राष्ट्रीयता के रंग में रंग गया। 


सन् 1896 में  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कलकत्ता के अधिवेशन में रविन्द्रनाथ टैगोर ने वन्दे मातरम् गीत गाया था। 1905 में बनारस के अधिवेशन में इस गीत को सरला देवी चौधरानी ने स्वर दिया। अधिवेशन में सभी धर्म के लोग होते थे, वे सभी इस गीत के प्रति खङे होकर अपना सम्मान व्यक्त करते थे। अंततः ये हमारा राष्ट्रीय गीत बना। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तब 14 से 15 अगस्त की मध्य  रात्रि में सत्ता के हस्तांतरण के लिए तत्कालीन केन्द्रिय असेम्बली का गठन किया गया जिसका प्रारंभ वंदे मातरम् के गायन से हुआ। ये गीत सुमधुर तरीके से सुचेताकृपलानी द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस विशेष अधिवेशन का सामापन भी वन्दे मातरम् गीत से हुआ। असेम्बली के कक्ष में उपस्थित सभी सदस्यों ने इस गायन में श्रद्धा पूर्वक भाग लेकर उद्घोष के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया। पूरा कक्ष वंदे मातरम् की गुंज से गुंजायमान हो गया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त जब भारत का संविधान निर्मित हो रहा था, तब ये प्रश्न उठा कि वंदे मातरम् गीत को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया जाये या किसी अन्य गीत को। उस दौरान तत्कालीन संगीतकारों का ये मानना था कि,  वंदेमातरम् गीत को लयबध करना कुछ कठिन है। अतः इसके अतिरिक्त किसी अन्य गीत को राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया जाये। अंत में  रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित 'जन  मन गण' को अपनाया गया।


वैसे तो संविधान सभा के अधिकांश सदस्य वंदे मातरम् को ही राष्ट्र गीत मानते थे क्योंकि ये गीत जनता के मानस पटल पर छाया हुआ था। परंतु जवाहरलाल नेहरु के आग्रह पर 'जन मन गण' को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया और साथ ही साथ वन्दे मातरम् को भी अनिवार्य माना गया। केवल तत्कालीन मुस्लिम लीग इस गीत का विरोध करती रही। परंतु स्वतंत्रता प्राप्ती के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में 24 जनवरी 1950 को वन्दे मातरम् को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने सम्बन्धि एक व्यक्तव्य पढा जिसे सभा द्वारा स्वीकार किया गया। 


इस गीत की प्रसिद्धी का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, 2003 में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक सर्वे में शीर्ष दस गीतों में वन्दे मातरम् गीत दूसरे स्थान पर था। इस सर्वे में लगभग 150 देशों ने मतदान किया था। 

ये अजीब विडम्बना है कि पिछले कुछ समय से वन्दे मातरम् पर विवाद उत्पन्न हो रहा है। विवाद मुख्यतः ये है कि इस गायन से मुर्ती पूजा का भाव प्रकट होता है। इस कारण मूर्ती पूजा के विरोधी सम्प्रदाय इसकी उपेक्षा करने लगे हैं। जबकि स्वतंत्रता से पूर्व मौलाना अबुल कलाम आजाद और सिमान्त गाँधी यानि की खान अब्दुल्ल गफ्फार खाँ जो की पाँचो समय की नमाज पढते थे, वे भी वन्दे  मातरम् के प्रति खङे होकर सम्मान व्यक्त करते थे। परंतु आज कुछ अलग तरह की राजनितिक वातावरण के कारण मातृ भूमी को नमन करतावन्दे मातरम् गीत उपेक्षित हो रहा है। जबकि सैकङों देशभक्त इस उद्घोष को बोलते-बोलते फांसी के फंदे पर झूलकर शहीद हो गये। 

मित्रों, सवतंत्रता दिवस की 68वीं वर्षगाँठ पर हम सब ये संक्लप लें कि शहिदों की शहादत को याद करते हुए वन्दे मातरम् को सम्पूर्ण भारत में गुंजायमान करेंगे। 


वन्दे मातरम्।
सुजलाम् सुफलाम् मलयजशीतलाम्,
शस्यश्यामलाम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। 

शुभ्रज्योत्सना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम् मातरम्। वन्दे मातरम्।। 

अर्थात, हे भारत माँ मैं आपकी वंदना करता हुँ। स्वच्छ और निर्मल पानी, अच्छे फलों,  सुगन्धित सुष्क समीर (हवा) तथा हरे भरे खेतों वाली माँ, मैं आपकी वंदना करता हूँ। सुन्दर प्रकाशित रात,  सुगंधित खिले हुए फूलों एवं घने वृक्षों की छाया प्रदान करते हुए, सुमधुर वाणी के साथ वरदान देने वाली भारत माता मैं अपकी वंदना करता हूँ। मैं आपकी वंदना करता हूँ।  

जय भारत 

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