हिन्दी बनाम अंग्रेजी Hindi vs English
हिन्दी हैं हम वतन है, हिन्दोस्ताँ हमारा कहने वाले देश की ये विडंबना है कि, यहाँ कुछ लोग अंग्रेजी को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए नाना प्रकार के हथकंडे अपना रहे हैं। जबकि हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन हो या बंगाली, तेलगु, कन्नङ, जापानी इत्यादि ये सभी भाषाएं हैं। भाषा तो अभिव्यक्ति का माध्यम होती हैं। ये एक ऐसी शक्ति है जो मानव को मानवता प्रदान करती है। हम भाषा के माध्यम से ही अपने मन के भावों और विचारों को शाब्दिक रूप देते हैं।
परन्तु ‘सेंटर फॉर रिर्सच एंड डिवेट्स इन डेवलप पॉलिसी’ की रिर्पोट के अनुसार फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले ज्यादा कमाते हैं। सवाल ये उठता है कि जब आजकल हर तरफ अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा कार्य चल रहा है तो भारत में बेरोजगारी की समस्या क्यों है? यदि फर्राटेदार अंग्रेजी से ज्यादा तनख्वाह मिल सकती है तो अंग्रेजी शिक्षा से तो रोजगार की गारंटी होनी चाहिए। किन्तु हकिकत में आज अधिकांश बच्चे बरोजगारी के शिकार हैं। सर्वे करने वाले न जाने किस आधार पर सर्वे करते हैं, वो ये भूल गये हैं कि रोजगार और अच्छी तनख्वाह के लिए हुनर होना चाहिए। जिस क्षेत्र में कार्य करना है उसका तकनिकी ज्ञान उस क्षेत्र की कामयाबी का प्रथम सोपान है। भारत में हिन्दी फिल्मों के क्षेत्र की विधाओं से जुङे लोग अत्यधिक कमाई करते है वनस्पत अन्य भाषाओं के, फिर भी भारत में अंग्रेजी को ही श्रेष्ठ मानना ये किसी त्रासदि से कम नही है।
कबीर के अनुसार, "संस्करित है कूप जल, भाषा बहता नीर।"
प्राचीन भारत के इतिहास का यदि अवलोकन करें तो स्पष्ट हो जाता है कि, अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आर्यभट्ट, चिकित्सा के क्षेत्र में चरक एवं धनवंतरि आदि वैज्ञानिकों ने तकनिकी ज्ञान के जटिलतम रहस्यों को भारतीय भाषाओं में अभिव्यक्त किया है। विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली 10 भाषाओं में हिन्दी को दूसरा स्थान मिला है।
गाँधी जी ने कहा था, “देशी भाषा का अनादर राष्ट्रीय आत्महत्या है।“
आज भले ही अंग्रेजी की वाकालत की जा रही है परन्तु 200 वर्ष पूर्व अंग्रेजी दोयम दर्जे की भाषा थी। उस समय फ्रेंच और जर्मन भाषा का वर्चस्व था। उस दौरान माइकल फैराडे ने अंग्रेजी को उबारने के लिए एक पहल की, उन्होने अपने मित्रों के साथ अंग्रेजी को प्रचारित करना शुरू किया जिससे अंग्रेजी भाषा का विकास होने लगा। कहने का आशय ये है कि, किसी भी भाषा को यदि प्रसारित किया जाए तो उसका विकास संभव है। अर्थात हिन्दी का उपयोग यदि अधिक से अधिक कार्यो में होने लगे तो उसका भी विकास संभव है। अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, और कानून आदि के क्षेत्र में नए ज्ञान का सृजन, मौलिक कार्य और अनुवाद से हिन्दी को भी रोजगार और व्यवसाय की भाषा बनाई जा सकती है।
परन्तु हम ऐसे दुर्भाग्यशाली हैं, जहाँ मातृभाषा दम तोङ रही है और अंग्रेजी हमें अपना गुलाम बना रही है। अंग्रेजी को अच्छी नौकरी का पैमाना बनाकर भ्रम फैलाया जा रहा है। सोचिए! देश का आधार कहा जाने वाला वर्ग यानि की किसान को खेती करने के लिए क्या अंग्रेजी बोलना जरूरी है? भारत के कस्बों, गॉवों और शहरों में करोङों लोग ऐसे हैं जिन्हे अंग्रेजी पल्ले नही पङती, उनके साथ व्यपारिक बातें अंग्रेजी में कैसे संभव है। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, भाषा को बोली में परिर्वतित करने की ये सोची समझी साजिश है, जो आजादी के 60 दशक बाद भी हमें अंग्रेजी दासता से जकङे हुए हैं।आज हम भाषाई शुद्धता खो रहे हैं, न तो हिन्दी शुद्ध बोल रहे हैं और न ही अंग्रेजी, एक अलग ही अपभ्रंश भाषा 'हिंग्लिश' का प्रयोग कर रहे हैं। जबकि देश की आशा है; हिन्दी भाषा। हिन्दी हमारी मातृभाषा है; मात्र एक भाषा नही है।
अतः हमें भाषाई विवादों को छोङकर अपने ज्ञान और कौशल का विकास करते हुए सफलता अर्जित करनी चाहिए। हिन्दी हो या फिर अंग्रेजी, इससे फर्क नही पङता। भाषा कोई भी हो, वह तो हमेशा एक दूसरे को जोङती है और तरक्की के रास्ते खोलती है, सफलता की गारंटी नही देती है।
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