Thursday, 4 September 2014

हमारी केदारनाथ यात्रा

हमारी केदारनाथ यात्रा


उत्तराखण्ड के पवित्र चार धामों में से एक तथा भोलेभंडारी शिव के बारह ज्योर्तिलिंग का ग्यारहंवां ज्योर्तलिंग केदार नाथ का पट इस वर्ष 4 मई को भक्तों के दर्शनार्थ हेतु खोल दिया गया। भगवान केदार नाथ से आशिर्वाद लेने अनेक भक्तजन केदारधाम की यात्रा पर निकल पङे हैं। पिछले साल की त्रासदी के बावजूद  ईश्वरीय आस्था के सैलाब ने प्राकृतिक आपदा के सैलाब को इस कदर शिक्सत देने की थान ली है कि 60-70 साल के बुजुर्ग भी भोलेनाथ के दर्शन को पैदल कठिन मार्ग पर भी चलने के लिए उत्सुक हैं। हर तरफ भोलेनाथ, कोदारनाथ बाबा की जय जयकार के साथ लोग लम्बी कतारों में सोनप्रयाग में दर्शन यात्रा हेतु प्रतिक्षा में खङे नजर आ रहे थे। डॉक्टरी जाँच परिक्षण की कतार हो या पोनी के लिए टिकिट पंक्ति चँहुओर दर्शनार्थी प्रसन्न मन से अपनी बारी का इंतजार करते हुए थकते नही।

शिव शंकर बाबा केदार नाथ के दर्शन की अभिलाषा लिए हम लोगों की यात्रा ऋषीकेश से 16 मई 2014 को  गढवाल मंडल के सहयोग से शुरू हुई, जो रास्ते में स्थित पावन पाँच प्रयागों के दर्शन से और भी मनोहारी हो रही थी। रास्ते के मनोरम प्रकृतिक दृश्य यात्रा को उत्साह प्रदान कर रहे थे। यात्रा शुरू होने के कुछ समय पश्चात हम लोगों ने देवप्रयाग का दर्शन लाभ लिया, जहाँ भागरथी तथा अलखनंदा का संगम है। केदारनाथ धाम की यात्रा के सफर में उत्तराखण्ड के पाँच प्रयागों का दर्शन अतिमनोहारी है जिसकी विस्तार में चर्चा अगले लेख में करेंगे।

देवप्रयाग पर अल्पविराम के पश्चात हमारी यात्रा आगे बढी और दोपहर के भोजन हेतु रुद्र प्रयाग में गढवालमंडल के गेस्टहाउस में रुकी। रुद्रप्रयाग में अलखनंदा और मंदाकनी का संगम है। भोजन अवकाश के पश्चात यात्रा आगे बढती है एंव शाम को रामपुर पहुँच गई। रामपुर के गेस्टहाउस में हम सभी के लिए रात्रिविश्राम की व्यवस्था थी। वहीं हम सबको ये पता चला कि सुरक्षा की दृष्टी से सभी का मेडिकल चेकअप अनिवार्य है, जिसके लिए लंबी कतार लगी हुई है। ऐसी स्थिती में हमारे गाइड ने उचित निर्णय लिया सुबह मेडिकल चेकअप कराने के बजाय शाम को ही वो हम सभी को लेकर रामपुर से 6 किमी दूर सोनप्रयाग ले गया। सोनप्रयाग में मेडीकल चेकअप की व्यवस्था थी। लंबी प्रतिक्षा के बाद हम सभी का मेडिकल सर्टीफिकेट बन गया और हम सभी ने इसे केदारनाथ दर्शन हेतु एक सकारात्मक संदेश माना। हम लोगों को हेलीकॉप्टर से केदार नाथ जाना था किन्तु सरकार द्वारा तबतक  हेलीकॉप्टर यातायात की अनुमति नही प्राप्त हो सकी थी। अतः हम लोगों ने अपनी यात्रा पोनी के माध्यम से पूर्ण करने का निर्णय लिया। अगले दिन 17 मई को प्रातः 4 बजे हमलोग सोनप्रयाग पहुँचे और वहाँ रजिस्ट्रेशन के पश्चात पोनी के माध्यम से 17 किमी की दूरी तय करके लिंचौली पहुँचे।


सोनप्रयाग से ही एक वर्ष पूर्व हुई त्रासदी का असर दिखने लगा था। सुरक्षा की दृष्टी से 500 या 600 यात्रियों को ही आगे की यात्रा की अनुमति मिल रही थी। सोनप्रयाग से केदार नाथ धाम का रास्ता आपदा के कारण और भी कठिन हो गया है, फिर भी आस्था का सैलाब हर कठिनाईयों को पार करके बाबा केदार नाथ के दर्शन को उत्साहित था। रास्ते के मनोरम दृश्य तथा पवित्र धाम के दर्शन की अभिलाषा, आगे बढने का उत्साह दे रहे थे। पहाङियों पर घुमावदार तथा  ऊँचे-निचे रास्ते, तो कहीं बेहद मुश्किल मोङ मन में अनेक भावों को जन्म दे रहे थे। कभी खाई का डर तो कभी झरनो की शीतलता मन को शान्त कर रही थी। मार्ग में सभी यात्रियों के मुख से ऊँ नमः शिवाय का स्वर गुँजायमान हो रहा था। गढवाल सरकार की तरफ से जगह-जगह पर चाय-पानी एवं भोजन की निःशुल्क व्यवस्था है, जहाँ यात्री अल्प विश्राम के पश्चात  जय भोले नाथ का जयकारा लगाते हुए आगे बढ रहे थे।  


जैसे-जैसे हम आगे बढ रहे थे रास्ता और अधिक कठिन हो रहा था, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बाबा केदार नाथ हम सभी की परिक्षा ले रहे हों। ईश्वर की कृपा से मौसम सकारात्मक था। लिंचौली के बाद लगभग 4 किमी का सफर हमें पैदल पूरा करना था। कहीं-कहीं बर्फ के बीच में से चलना तो कहीं सीधी पहाङी पर चढना। यात्रा अत्यधिक मुश्किल थी,  एक किमी का सफर पूरा करने में एक घंटे का समय लगा। मार्ग में सेवाभाव में लगे लोग सभी दर्शनार्थियों को आगे बढने के लिए प्रेरित कर रहे थे। शिव की कृपा और लोगों के सकारात्मक सहयोग से बर्फिली पहाङियों के रास्ते तथा ऊँचे-निचे दुर्गम मार्ग भी पार हो गये। जैसे ही मंदिर का गुम्बद दिखा, हम सभी में उमंग का ऐसा संचार हुआ कि थकान काफूर हो गई। जगत पिता केदारनाथ के आर्शिवाद हेतु हमारे पैर मंदिर की ओर चल पङे, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि, कोई पिता अपने बच्चों को गले लगाने के लिए बाँहें फैलाए खङा हो। चारो तरफ बर्फ की सफेद चादरों के बीच बाबा केदारनाथ का मंदिर मनोहारी प्रतीत हो रहा था। अक्सर हम सबके मन में जो छवी है कि, कैलाश पर शिव बर्फ के पहाङों पर बैठे हैं, उसी दृश्य का आभास होने लगा था।  

मंदिर के अंदर परम् पिता केदारनाथ बाबा का प्रतीक ग्रेफाइट की एक शिला से बना हुआ है जो त्रीकोंणिय आकार का है। जिसमें बुद्धि के देवता गणेंश एंव माता पार्वती,  शिवशंकर केदारनाथ के संग विराजमान हैं। मंदिर के अंदर स्थित पुजारी जी के द्वारा हमें मंत्रोचार से 20 मिनट तक  पूजा अर्चना करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिससे अद्भुत मानसिक शान्ति का आभास हो रहा था। दुर्गम एवं कठिन रास्तों की थकान दर्शन मात्र से पलभर में दूर हो गई। मंदिर परिसर में हमने लगभग एक घंटे का समय व्यतीत किया। शिव के दर्शन से प्राप्त आर्शिवाद का ऐसा असर हुआ कि वापसी का सफर रंच मात्र भी दुष्कर नही लगा। पहाङी रास्तों पर रात्री का सफर लगभग असंभव होता है अतः हम लोग लिंचौली में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा बनाये गये टेन्टहाउस में रात्री विश्राम के लिए रुके, जहाँ अत्यधिक ठंड  से बचने के लिए प्रत्येक यात्रियों को स्लीिपिंग बैग दिया गया था। अगले दिन प्रातः 5 बजे हम लोग वापस सोनप्रयाग के लिए प्रस्थान किये। प्रभु की ऐसी कृपा हुई कि  अधिकांश दूरी हम पैदल ही चलकर पार कर सके।  

ईश्वर की कृपा से ही हम बाबा केदार नाथ का दर्शन लाभ प्राप्त कर सके। ये सारस्वत सत्य है कि  ईश्वर की कृपा के बिना एक पत्ता भी नही हिलता उनकी कृपा हो तो मार्ग के सभी संकट पलभर में दूर हो जातें हैं। परन्तु प्रयास करना मनुष्य का परम् धर्म है, अतः आपदा के खौफ से बाहर निकलकर केदारनाथ की यात्रा के इच्छुक लोगों को यात्रा की शुरूवात जरूर करनी चाहिये क्योंकि ईश्वर भी उसी की सहायता करता है जो आगे बढने का प्रयास करता है।पवित्र धाम केदारनाथ की अद्भुत छवि का वर्णन शब्दों में असंभव है क्योंकि उसे सिर्फ वहाँ जाकर महसूस ही किया जा सकता है। अपने अनुभव को इस लेख द्वारा व्यक्त करना एक प्रयास है। केदार नाथ के दर्शन के पश्चात हम लोगों की यात्रा बद्रीनाथ धाम के दर्शन हेतु अग्रसर हुई। एक सप्ताह की हमारी यात्रा में 12 लोगों का समूह था, जो अलग-अलग प्रान्त के थे, फिर भी यात्रा के दौरान ऐसा सकारात्मक वातावरण बना रहा कि हम सब एक परिवार जैसे ही रहे तथा भारतीय संस्कृति को आत्मसात करते हुए हर्षोल्लास के साथ हम सभी का सफर दोनो धाम अर्थात केदारनाथ तथा बद्रीनाथ के दर्शन से पूर्ण हुआ। 



बाबा केदारनाथ की कथा एवं पाँच प्रयागों का उल्लेख हम अपने अगले लेख में करेंगे। ऊँ नमः शिवाय 


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