केदारनाथ धाम
हिमालय की गोद में तपस्वियों, ऋषियों की तपो भूमि केदारनाथ शिव धाम समुन्द्र तल से 11735 फिट की ऊँचाई पर स्थित अत्यन्त शोभायमान स्थान है। यहाँ परम् पिता महादेव का ग्यारहवाँ ज्योर्तिलिंग श्री केदारेश्वर के रूप में विद्यमान है। पौराणिक कथानुसार केदारनाथ से संबंधी प्रचलित कथा इस प्रकार हैः-
कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद गोत्र हत्या के पाप का प्रायश्चित्त करने के लिए पांडव काशी गये परन्तु वहाँ वे भोले भंडारी विश्वनाथ का दर्शन कर प्रायश्चित्त नहीं कर सके। ऐसा मानना है कि शिव शंकर उन्हे दर्शन देना नहीं चाहते थे, अतः वे हिमालय पर चले गये। पांडव महादेव को ढूढंते हुए हिमालय पहुँचे किन्तु शिव वहाँ से भी अदृश्य हो गये। इस स्थान को गुप्त काशी कहा जाता है। पांडव गौरी कुण्ड आदि स्थानों पर शिव को ढूंढते हुए आगे बढ रहे थे कि तभी नकुल और सहदेव को एक नर भैंसा दिखा जिसका रूप विचित्र था। विचित्र भैंसे को देखकर भीम उसके पीछे दौङे अत्य़धिक भागम-भाग के कारण भीम थक गये परंतु भैंसा भीम के हाँथ नहीं लगा। तभी भैंसे को दूर खङे देख भीम ने उसपर गदा से प्रहार किया तब भी वो भैंसा जमीन में मुख छिपाए बैठा रहा। भीम ने उसकी पूंछ पकङ कर जोर से खींचा तो भैंसे का मुख नेपाल में प्रकट हुआ जिसे पशुपतीनाथ के नाम से जाना जाता है। भैंसे का पार्श्वभाग वहीं रह गया, उसमें से दिव्य ज्योति प्रकट हुई। इस ज्योति में भगवान शिव शंकर प्रकट हुए और उन्होने पांडवों को दर्शन दिये। महादेव के आशिर्वाद से पांडव गोत्र हत्या के पाप से मुक्त हुए। पांडवों की प्रार्थना पर भगवान भोले नाथ त्रीकोंणिय आकार में भक्तों के कल्यांण हेतु वहीं विराजमान हो गये। नर भैंसे का पश्च भाग त्रीकोंणी था अतः शिव का ये रूप त्रीकोंणिय आकार में पूज्यनिय है।
नर भैंसे के रूप में प्रत्यत्क्ष शिवजी पर गदा से प्रहार करने की वजह से भीम बहुत दुःखी हुए तथा भोलेभंडारी शिव से क्षमा याचना माँगी तथा उनकी पीठ की घी से मालिश किये। आज भी केदार नाथ में पानी से अभिषेक करने के बजाय घी से अभिषेक किया जाता है। केदार नामक हिमालय चोटी पर स्थित होने के कारण इस ज्योर्तिलिंग को केदारेश्वर ज्योर्तिलिंग के रूप में पूजा जाता है।
केदारनाथ मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर बङे पत्थरों से बना मंदिर है। ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार 1019 में राजा भोज ने इसे बनवाया था। 1800 में अहिल्लयाबाई होल्कर ने इसका जिर्णोद्वार करवाकर मंदिर पर स्वर्ण कलश स्थापित करवाया। मंदिर के सभामंडप में नंदी, पांडव, द्रोपदी, कुंती तथा कृष्ण भगवान की मूर्तियां भी स्थापित हैं। ज्योर्तलिंग का आकार त्रीकोंणिय होने के कारण इस पर जालाभीषेक नहीं किया जाता। केदार नाथ की प्रातः कालीन पूजा को निर्वाण दर्शन कहा जाता है तथा सांयकालीन पूजा को शृगांरदर्शन कहा जाता है। केदारनाथ धाम की महिमा का वर्णन गरुण पुराण, शिव पुराण, सौर पुराण तथा पद्म पुराण आदि में वर्णित किया गया है। कार्तिक मास में जब जोर की हिम वर्षा होती है तो श्री केदारेश्वर का भोगसिंहासन निकालकर मंदिर का द्वार बंद कर दिया जाता है। चैत्र मास तक केदारनाथ जी का निवास उखीमठ में होता है।
वर्ष 2013 में आई प्राकृतिक सुनामी में जहां संपूर्ण बस्ती का विनाश हो गया वहीं केदार नाथ मंदिर का सुरक्षित रहना ईश्वरीय चमत्कार ही है। शिव की अद्भुत महिमा का ऐसा असर हुआ कि एक चट्टान पता नहीं कहाँ से आकर मंदिर के लिए सुरक्षा कवच बन गई। इस रहस्य की गुत्थी विज्ञान भी सुलझाने में असर्मथ है। गौरी कुण्ड में भी केवल माता भगवती का मंदिर, सुरक्षित बचा रहना आस्था के विश्वास को और भी मजबूत करता है। सर्व शक्तिमान बाबा केदारनाथ का आशिर्वाद हम सभी पर रहे तथा विश्वास और आस्था की अलख हम सभी के मन में जलती रहे। ऐसी पवित्र मनोकामना के साथ सब मिलकर प्रेम से बोले ऊँ नमःशिवाय।
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