Thursday, 4 September 2014

प्रशंसा के फूल

प्रशंसा के फूल


याद कीजिए जीवन के वो स्वर्णिम पल जब शिक्षक और अभिभावक अच्छी पढाई, उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन या अच्छे व्यवहार के लिए शाबासी देते थे और ‘Keep it up’ कहकर हौसला बढाते थे। ये शब्द बाल सुलभ मन में उत्साह का संचार कर देते थे। कार्य को और बेहतर करने की प्रेरणा देते थे। आज भले ही हम बङे हो गयें हों फिर भी अच्छे कार्यों के हेतु, अपनो से मिली प्रशंसा जीवन में नई चेतना और सकारात्मक ऊर्जा देती है। प्रशंसा से भरे शब्द संघर्षमय जीवन में रामबांण औषधी की तरह हैं। सच्ची तारीफ सदा लाभदायक होती है। व्यक्ति में प्रशंसा के माध्यम से उसके कार्य करने की क्षमता कई गुना बढ जाती है।   

प्रशंसा का भाव एक ऐसी औषधी है, जिससे व्यक्ति के मन में उमंग तथा उत्साह का संचार होता है। प्रशंसा राह भ्रमित व्यक्ति को राह पर ले आती है, उसमें सकारात्मक भावनाओं का विकास होता है। सच्ची प्रशंसा करने से कभी पीछे नही हटना चाहिए।  कभी भी झूठी तारीफ नहीं करनी चाहिए क्योंकि झूठी प्रशंसा चाटूकारिता या कहें चापलूसी का प्रतीक है। संभवतः इससे दूर ही रहना चाहिए।  

प्रशंसा करना एक कला है, जो दिल की गहराइंयों से निकलनी चाहिए, तभी उसकी पहुँच दूसरे तक जायेगी । कभी भी किसी की प्रशंसा करते समय आडंबर का सहारा नही लेना चाहिए। जीवन में हमसभी की कई बार ऐसे लोगों से मुलाकात होती है जिन्हे हम व्यक्तिगत रूप से नही जानते फिर भी उनके कार्यो से प्रभावित होते हैं। यदि जीवन में ऐसा ही कोई व्यक्ति नेक काम करते दिखे या अपने कार्य को ईमानदारी से निभाते दिखे तो उसकी प्रशंसा करने से स्वंय को कभी भी रोकना नही चाहिए। प्रशंसा के शब्द अमृत के समान हैं जिसको व्यवहार में अपनाने से दोनो को ही शांति और प्रसन्नता की अनुभूति होती है, जो बहुमूल्य है।

जीवन की यात्रा के दौरान यदि व्यक्ति को प्रशंसा मिलती है तो उसका अपने कार्य के प्रति उत्साह बढ जाता है और वे अधिक ऊर्जा से अपने कर्तव्य का निर्वाह करता है। अधिनस्त कर्मचारियों द्वारा किये गये उत्कृष्ट कार्यों पर बङे अधिकारियों द्वारा की गई प्रशंसा विकास की राह को आसान बनाती है। सामाजिक विकास हो या व्यक्तिगत विकास सभी एक दूसरे के सहयोग से सम्पूर्ण होते हैं, परन्तु आलम ये है कि हम उन सहयोग को भूल जाते हैं। विकास की दौङ में अप्रत्यक्ष लोगों की सराहना को नजर अंदाज कर देते हैं। जबकी प्रशंसा भरे शब्द तो सुगन्धित फूल के समान हैं जिसकी खुशबू व्यक्ति में अच्छे भावों को महका देती है।

सच्ची तारीफ अंधकार भरे जीवन में आगे बढने की चाह रूपी उजाले की ज्योति होती है। परंतु अपनी तारीफ स्वंय नही करनी चाहिए और दूसरों से मिली तारीफों से स्वंय में अंहकार को जगह नही देना चाहिए। प्रशंसा तो उस सीढी के समान है, जो हमें ऊपर भी ले जा सकती है और नीचे भी गिरा सकती है। किन्तु जीवन में कुछ पल ऐसे भी होते हैं जब स्वंय की पीठ भी थपथपा लेनी चाहिए और अपनी उपलब्धियों के बारे में सोचना चाहिए ताकि जीवन में आए निराशा के बादल स्व प्रेरणा से छँट जायें। स्व-सराहना जीवन में नई ऊर्जा के साथ कार्य करने की प्रेरणा देती है।

सच्ची प्रशंसा सदैव सकारात्मक भावों का ही विकास करती है। प्रशंसा के सदुपयोग से व्यक्ति का सकारात्मक और समुचित विकास होता है, परन्तु दुरपयोग से अंहकार एवं द्वंद का जन्म होता है। इसलिए प्रशंसा रूपी मिठास का सही समय पर, सही तरीके से उपयोग करना चाहिए और प्रशंसा करने का अवसर चूकना नही चाहीए। 

               
 

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