Thursday, 4 September 2014

प्रतिकूलताएँ भी वरदान बन सकती हैं

प्रतिकूलताएँ भी वरदान बन सकती हैं


प्रकृति हमारी जननी है, जो हमें सदैव ऐसी परिस्थिती प्रदान करती है, जिसमें हम सभी का विकास होता है। जीवन में धूप-छाँव की स्थिती हमेशा रहती है। सुख-दुख एवं रात-दिन का चक्र अपनी गति से चलता रहता है। ये आवश्यक नही है कि, हर पल हमारी सोच के अनुरूप ही हो। प्रतिकूलताएँ तो जीवन प्रवाह का एक सहज स्वाभाविक क्रम है। सम्पूर्ण विकास के लिए दोनो का महत्व है। दिन का महत्व रात्री के समय ही समझ में आता है।
मनोवैज्ञानिक जेम्स का कथन है कि, ये संभव नही है कि सदैव अनुकूलता बनी रहे प्रतिकूलता न आए।

कई बार जीवन में ऐसी परिस्थिती आती है, जब लगता है कि सफलता की गाङी सही ट्रैक (रास्ते) पर चल रही है, परन्तु स्पीड ब्रेकर (गति अवरोधक) रूपी प्रतिकूलताएं लक्ष्य की गति को धीमा कर देती हैं। कभी तो ऐसी स्थिती भी बन जाती है कि सफलता की गाङी का पहिया रुक जाता है। अचानक आए अवरोध से परेशान होना एक मानवीय आदत है जिसका असर किसी पर भी हो सकता है। परन्तु जो व्यक्ति मानसिक सन्तुलन के साथ अपनी गाङी को पुनः गति देता है, वही सफलता की सीढी चढता है।

डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल्ल कलाम साहब का मानना है कि,
“Waves are my inspiration, not because they rise and fall,
But whenever they fall, they rise again.”

विपरीत परिस्थिती में निराशा का भाव पनपना एक साधरण सी बात है, किन्तु निराशा के घने कुहांसे से वही बाहर निकल पाता है जो अदम्य साहस के साथ अविचल संकल्प शक्ति का धनि होता है। ऐसे लोग पर्वत के समान प्रतिकूलताओं को भी अपने आशावादी विचारों से अनुकूलता में बदल देते हैं।

रविन्द्र नाथ टैगोर ने कहा है कि, हम ये प्रर्थना न करें कि हमारे ऊपर खतरे न आएं, बल्कि ये प्रार्थना करें कि हम उनका सामना करने में निडर रहें

विपरीत परिस्थितियों में भी अपार संभावनाएं छुपी रहती है। अल्फ्रेड एडलर के अनुसार, मानवीय व्यक्तित्व के विकास में कठिनाइंयों एवं प्रतिकूलताओं का होना आवश्यक है। लाइफ शुड मीन टू यु पुस्तक में उन्होने लिखा है कि, यदि हम ऐसे व्यक्ति अथवा मानव समाज की कल्पना करें कि वे इस स्थिती में पहुँच गये हैं, जहाँ कोई कठिनाई न हो तो ऐसे वातावरण में मानव विकास रुक जायेगा।

अनुकूल परिस्थिती में सफलता मिलना कोई आश्चर्य की बात नही है। परन्तु विपरीत परिस्थिती में सफलता अर्जित करना, किचङ में कमल के समान है। जो अभावों में भी हँसते हुए आशावादी सोच के साथ लक्ष्य तक बढते हैं, उनका रास्ता प्रतिकूलताओं की प्रचंड आधियाँ भी नही रोक पाती। अनुकूलताएं और प्रतिकूलताएँ तो एक दूसरे की पर्याय हैं। इसमें स्वंय को कूल (शान्त) रखते हुए आगे बढना ही जीवन का सबसे बङा सच है।

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