उत्तराखण्ड के पाँच प्रयाग
भारत वर्ष में पवित्र नदियों के संगम को प्रयाग कहा जाता है। इलाहाबाद में गंगा, जमुना एवं सरस्वती के संगम को प्रयाग राज कहा जाता है। ऐसे ही उत्तराखण्ड के पाँच प्रयागों का हमारे धर्मों में विषेश महत्व है। जो इस प्रकार हैः-
देवप्रयागः- अलकनंदा तथा भगीरथ नदियों के संगम पर देवप्रयाग नामक स्थान स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद इस नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है । यह समुद्र सतह से १५०० फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। देवप्रयाग में शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर है, जो की यहां के मुख्य आकर्षण हैं। रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है। देवप्रयाग में कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है।
रुद्र प्रयागः- रुद्र प्रयाग मंदाकिनी और अलकनंदा के संगम पर स्थित है। अलकनंदा का उद्गम स्थल बद्रीनाथ धाम है एवं मंदाकिनी शिव के क्षेत्र केदारनाथ से प्रवाहित होती है। रुद्र प्रयाग में ही नारद जी ने रुद्र रूप शिव से संगीत का ज्ञान प्राप्त किया था। यहाँ शिव के रुद्र अवतार का दर्शन होता है। यहीं पर भगवान रुद्र ने श्री नारदजी को `महती' नाम की वीणा भी प्रदान की थी। यहीं से केदारनाथ के दर्शन हेतु यात्रा मार्ग आरंभ होता है। यहाँ की संध्या आरती का सौभाग्य हम दोनों को भी प्राप्त हुआ जो अति आनंदमय क्षण था।
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भारत की संस्कृति में नदियों को देवी रूप प्रदान किया गया है, अतः उपरोक्त प्रयागों का दर्शन धार्मिक यात्रा में विशेष महत्व रखता है। इन पाँच प्रयागों के पश्चात ही देव प्रयाग के बाद से ही इस धरती पर माँ गंगा का अवतरण होता है। ऋषिकेश से अलकनंदा मंदाकिनी नंदाकिनी धौली गंगा पिंडर नदी तथा भागीरथी माँ गंगा के नाम से इस धरती पर पूज्यनिय हैं। पवित्र पावनी जीवनदायनी मोक्षदायनि माँ गंगा को निमर्ल एवं स्वच्छ रखने का प्रण करते हुए शत् शत् नमन करते हैं।
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